अजमेर से निकलकर 10 जिलों से होते हुए गुजरात के कच्छ तक पहुंचने वाली 513 किमी लंबी लूणी नदी का जल्द ही कायाकल्प होगा। सैटेलाइट सर्वे और ग्राउंड वर्क के बाद डीपीआर फाइनल करने के लिए मंगलवार को आफरी में वन एवं पर्यावरण विभाग ने कार्यशाला आयोजित की गई। इसमें सभी विभागों से सुझाव मांगे गए। मरु गंगा के नाम से प्रसिद्ध लूणी नदी राजस्थान में 330 किमी का सफर तय कर गुजरात में प्रवेश करती है। इसके पुन: बहने से जहां भू-जल में बढ़ोतरी होगी, वहीं पर्यावरण में भी सुधार हाेगा। साथ ही लोगों की आर्थिक उन्नति भी होगी। नमामि गंगे की तर्ज पर देश की 13 नदियों काे कायाकल्प के चुना गया। इसमें लूणी नदी शामिल।
वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (हैड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स) डाॅ. जीवी रेड्डी ने बताया कि लूणी के कायाकल्प के लिए नई तकनीकी से योजना को अंतिम रूप दिया जाएगा। आफरी निदेशक एमआर बालोच ने बताया कि लूणी पर आफरी एक साल से कार्य कर रही है। इसमें प्राकृतिक लैंड स्केप के छह माॅडल, सामुदायिक लैंड स्केप का एक माॅडल, शहरी वानिकी के तीन मॉडल के साथ सात सहायक गतिविधियों को शमिल किया गया है, जिनमें वानिकी, कृषि वानिकी, हर्बल उद्यान शामिल हैं। योजना को अंतिम रूप देकर भारतीय वानिकी अनुसंधान शिक्षा परिषद देहरादून को भेजा जाएगा। वहां से वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को भेजा जाएगा। क्रियान्वयन वन विभाग करेगा। असम के सेवानिवृत्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक एनके वासु ने बताया कि परियोजना से क्षेत्र का विकास होगा।
513 किमी लंबी मरु गंगा के कायाकल्प की तैयारी, प्रदेश के 330 किमी हिस्से में बढ़ेगा भू-जल, सुधरेगा पर्यावरण