जैसलमेर के सम रास्ते पर 1825 तक कुलधरा गांव आबाद था, लेकिन समय के साथ यह खंडहर में तब्दील हो गया। लोगों ने भूतहा गांव के रूप में खूब बदनाम किया, लेकिन आज से करीब 8 साल पहले राज्य सरकार की पहल के बाद जिंदल स्टील के जेएसडब्ल्यू फाउंडेशन ने सीएसआर के तहत इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का प्लान बनाया। पुरात्व विभाग और राज्य सरकार ने एक मंदिर व एक मकान का पुनर्निमाण किया था। फाउंडेशन ने वहां वॉक-वे, म्यूजियम, कैफेटेरिया व गार्ड पोस्ट बनवाए तथा बावड़ी का पुनरुद्धार किया। यह गांव पालीवाल ब्राह्मणों का था, उन्होंने हाईकाेर्ट में एक याचिका लगा कर इसके मूल स्वरूप को छेड़ने से रोकने की मांग की। साथ ही सोविनियर शॉप बंद करने की मांग की थी क्योंकि उन्हें वहां शराब-मांस परोसने का अंदेशा था। कोर्ट ने आदेश दिया कि गांव के प्रवेश द्वार से जो रास्ता जाता है उसके दायीं ओर कोई नया निर्माण नहीं होगा, वहां कामर्शियल एक्टिविटी नहीं होगी। जो निर्माण हो गया है, उसे बरकरार रखा जाएगा।
रातों-रात खाली हो गया था 2000 घरों का गांव, भूतहा मानने लगे
जैसलमेर के सम के रास्ते पर 1825 तक कुलधरा गांव आबाद था। कहा जाता है कि एक दीवान की बुरी नजर गांव के पुजारी की बेटी पर थी। उसने धमकी दी थी कि बेटी का विवाह उससे नहीं कराया तो वह उसे उठा ले जाएगा। बेटी की आबरू बचाने के लिए कुलधरा समेत 83 गांव रातोरात खाली हो गए थे। हालांकि 82 गांव बाद में बस गए लेकिन कुलधरा के दो हजार घर उजाड़ ही रहे। तब से इनमें रात को कोई नहीं रुकता। खंडहरों में बदल गए इस गांव को लोग भूतहा गांव कहने लगे